वह बदनाम औरत - भाग 1 S Sinha द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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वह बदनाम औरत - भाग 1

 

   कहानी -    वह बदनाम औरत 


Part 1 - यह कहानी एक बदनाम औरत की जिसने एक असहाय दंपत्ति की सब प्रकार से मदद की  . …

                                                                                 

   मोहन अपनी पत्नी चंदा के साथ गाँव में रहता था  . शादी के पांच साल बाद भी उसे कोई संतान न थी   . पैतृक सम्पत्ति के नाम पर कुछ खेती की जमीन और एक झोपड़ी उसके पास बची थी  . उसका गाँव नेपाल की सीमा से थोड़ी ही दूरी पर था  . अक्सर बरसात के दिनों में उधर से पानी छोड़ दिया जाता जिसके चलते पूरा गाँव जलमग्न हो जाता और सारी फसल बर्बाद हो जाती  . अपने गुजारे के लिए उसे  कुछ जमीन बेचनी  पड़ती थी  . बहुत मुश्किल से उसका गुजारा हो रहा था  .  पिछले दो साल से लगातार बाढ़ के चलते उसे खेत से कुछ भी अनाज नहीं मिल सका था  . इसलिए मोहन गाँव छोड़ कर शहर जाना चाहता था  .उसे विश्वास था कि  वहां कोई न कोई काम मिल जायेगा और दो वक़्त की रोटी   का इंतजाम  हो जायेगा  . 


मोहन अपनी साइकिल और कुछ सामान के साथ शहर आ गया  . वहां उसे एक बिल्डर के यहाँ काम मिला  . वह बिल्डर एक अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स बना रहा था  . वहीं उसे स्टील के चदरे से बनी झोंपड़ी में पनाह मिली  . दोनों मियां बीबी वहीँ काम करते  . हर शनिवार को उन्हें सप्ताह का पगार मिलता जिस से वे हफ्ते भर का राशन पानी ले आते  .  उनका गुजारा आराम से हो रहा था और साथ ही वे कुछ बचत भी कर लेते थे  . 


एक दिन जब मोहन अपनी साइकिल से गृहस्थी के कुछ सामान लेने जा रहा था तभी एक कार वाले ने उसे टक्कर मारी  . कार वाला तो उसे टक्कर मार कर भाग गया  . पर वह सड़क पर लगभग बेहोश  गिर पड़ा  . रह रह कर उसके मुंह से चोट के कारण  कराहने की आवाज़ आ रही थी  . कुछ लोग उसे घेरे तमाशा देख रहे थे  . उसी समय कार से एक औरत उतर कर आयी और उसने भीड़ से पूछा “ यहाँ क्या हो रहा है ? “ 


“ एक कार वाले ने इसे टक्कर मार कर घायल कर दिया है  . “ भीड़ में किसी ने कहा 


“ और आपलोग इसे अस्पताल न ले जा कर यहाँ तमाशा देख रहे हैं  . “ 


“ नहीं , हमलोग पुलिस के चक्कर में नहीं पड़ना चाहते हैं  . “ भीड़ में से कुछ  लोगों ने एक साथ कहा 


“ आपलोग एक किनारे हटिये , मुझे रास्ता दीजिये  .  “ 


वह  औरत मोहन को ले कर अस्पताल गयी  . उसकी जेब से मोहन का पहचान  कार्ड मिला जिस से उसका पता मिल गया  . डॉक्टर ने कहा “ यह पुलिस केस का मामला है , पहले पुलिस को इन्फॉर्म करना होगा  . “ 


“ तब आप शायद मुझे नहीं जानते हैं , मेरा नाम शीला  है  .   यह बिल्डर के यहाँ मजदूरी करता है  . पुलिस इसे  परेशान करेगी , आप मान लीजिये यह मेरे घर की  सीढ़ियों से गिर कर ज़ख़्मी हुआ है  . मैं यह लिख कर देने को तैयार हूँ और जरूरत पड़ी तो दो चार गवाही भी दे दूँगी   . आप इलाज शुरू करें , इसके पैसे मैं दूँगी  . प्लीज देर न करें  “ 


“ मैडम आपको हमलोग जानते हैं  . आप कब तक इसी तरह अनजान लोगों की भलाई करती रहेंगी ? “ 

 


डॉक्टर ने मोहन को चेक कर उसका इलाज शुरू किया  . शीला ने डॉक्टर से पूछा “ इसे कोई गंभीर चोट तो नहीं है ? “ 


“ नहीं , कोई सीरियस बात तो नहीं है पर पैर की हड्डी टूट गयी है  .  हमलोग जोड़ कर प्लास्टर कर देंगे पर इसके चलने फिरने में तीन चार महीने तो लग ही जायेंगे  . फिलहाल यह बहुत नर्वस है इसलिए बोल नहीं पा रहा है पर चिंता की कोई बात नहीं है  .  “ 


 वहां कुछ देर बाद मोहन बोलने की स्थिति में आया तब उसने पूछा  “ मुझे यहाँ किसने लाया है ? मेरी बीबी मेरा इन्तजार करती होगी  . “ 


 शीला ने कहा “ तुम घबराओ नहीं , उसे लाने के लिए मैंने अपने ड्राइवर को पहले ही भेज दिया  है  . वह आती ही होगी  . “ 


कुछ देर में चंदा भी आ गयी  . सारी बात जानने के बाद उसने कहा “ भगवान हम गरीबों को ही क्यों सताता है ? अब यह तो काम नहीं कर सकता है और इसकी देखभाल मुझे करनी होगी  . ऐसे में मैं भी काम पर नहीं जा सकती हूँ  . हमारा खर्चा कैसे चलेगा ? ऊपर से इलाज का खर्च  . हमारे पास बचत के नाम पर करीब चार पांच सौ रूपये होंगे , बस  . “ 


“ तुम फ़िलहाल पैसों की चिंता मुझ पर छोड़ दो  . जहाँ तक नौकरी का सवाल है तुम लोग मेरे यहाँ चल कर रहना  . जब तक मोहन ठीक नहीं हो जाता तुम मेरे घर के कुछ काम कर दिया करना उसके लिए मैं तुम्हें उचित पैसे दे दूँगी  . मोहन जब ठीक हो जायेगा उसे भी कोई न कोई काम जरूर मिल जायेगा  . जहाँ तक हो सकेगा मैं भी उसे काम दिलाने में मदद करूंगी  . “  शीला ने कहा 


चंदा  पूछ बैठी “ पर आप हमारी इतनी मदद क्यों करेंगी  ? आप तो हमें जानती भी नहीं हैं  . “ 


“ कुछ इंसानियत के नाते और कुछ पड़ोसी होने के नाते  . “ 


“ पड़ोसी , वह कैसे ? हमने तो कभी आपको अपने पड़ोस में नहीं देखा है  . “ 


“ सब बातें अभी ही जान लोगी या कुछ घर चलने के बाद  . “ 


तभी डॉक्टर ने आकर कहा “ हमने मोहन का प्लास्टर लगा  दिया है  . एक दो दिन में इसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर देंगे  . तीन सप्ताह बाद इसे ले कर आना होगा तब हम प्लास्टर खोल कर देखेंगे कि कितना प्रोग्रेस हुआ है  . हो सकता है एक बार और प्लास्टर करना पड़े  . हाँ , इस बीच इन्हें बेड रेस्ट की जरूरत है ताकि हड्डी जल्द से जल्द जुड़ जाए  . “ 


दो दिन बाद शीला चंदा को ले कर अपने घर आई  . उसका घर बहुत बड़ा नहीं था और न ही बहुत छोटा  . एक बाउंड्री  वाल के अंदर डुप्लेक्स बंगला था जिसके एक छोर पर एक कमरे का सर्वेंट रूम था  . गेट के पास लोहे की चदरे से बना  एक वाचमैन  रूम था  . इसमें बारह बारह घंटों की शिफ्ट में दो वॉचमैन रहते थे  . मोहन और चंदा को वही कमरा दिया गया  . यह एक  कमरा भी उनके लिए बहुत था , कम से कम इसके ऊपर कंक्रीट की छत तो थी  .  


चंदा अगले दिन से ही शीला के घर के काम में लग गयी  . वैसे तो उसके यहाँ पहले से भी एक प्रौढ़ नेपाली औरत काम कर रही थी   . शीला ने चंदा को किचेन और रसोई का काम सौंप दिया  . वह बीच बीच में जा कर मोहन को देख आती  . वैसे देखने में शीला की उम्र 25 के  आस पास लगती थी हालांकि दरअसल वह करीब 30 - 32  की रही होगी  . जो भी हो वह एक सुंदर युवती थी  . 


चंदा ने महसूस किया घर में आने वाले ज्यादातर  30 - 40 वर्ष के अमीर लोग थे  . पर एक दिन में एक ही आदमी कार से आता और करीब चार पांच घंटे बिताकर चला जाता  . इस बीच शीला और उसका मेहमान दोनों ऊपर के कमरे में होते और वहां से गाने बजाने हंसी मजाक की आवाजें आतीं  . अक्सर ऐसा शाम से शुरू हो कर मध्य रात्रि तक  चलता  . हां , जब भी कोई आता उसके बाद  बहादुर गेट पर ताला लगा देता और चंदा  को छुट्टी मिल जाती  . कभी कभी शीला खुद बाहर जाती तो सारा दिन बिता कर ही लौटती और उस दिन शाम को कोई नहीं आता   . 


 तीन सप्ताह बाद शीला मोहन और चंदा को अस्पताल ड्राप कर  बोली “ यहाँ का काम हो जाये तब तुम लोग ऑटो रिक्शा से घर चले जाना  . “ 


डॉक्टर ने मोहन का चेकअप कर कहा “ प्रोग्रेस बहुत अच्छा है पर एक बार फिर प्लास्टर करना होगा  . फिर दो तीन सप्ताह में हड्डी पूरी तरह जुड़ जाएगी  . उसके बाद प्लास्टर हटा देंगे  . फिर भी कुछ दिनों तक उस पैर पर लोड नहीं देना , बैसाखी के सहारे चलना  . उम्मीद है एक महीने बाद तुम अपना काम सामान्य रूप से कर सकोगे  . “ 


उस दिन शीला देर शाम को घर लौटी  .उसके कदम डगमगा रहे थे  . उस के  साथ एक आदमी उसे सहारा दे रहा था  . जिस तरह से वह आदमी चंदा को घूर रहा था उसे देख शीला ने कहा “  चंदा अब तुम जा सकती हो  . “  चंदा को भी उस आदमी की नीयत ठीक नहीं लगी  . उसने देखा कि कुछ ही देर बाद  वह आदमी भी शीला को छोड़ कर चला गया  . वह अपने रूम में चली गयी और उसने पूरी बात मोहन को बताई  . वह बोला “ जाने दो , हमें उन लोगों की निजी बातों से क्या लेना देना  . “ 


कुछ दिन बाद चंदा शीला से पूछ बैठी “ आप के यहाँ जब कोई आदमी आता है तब मेरी छुट्टी क्यों कर देती हैं ? “


“ इसलिए कि तुम उनकी नजरों से बची रहो   . “ 


“ क्या मतलब ? “


“ देखो , तुम गाँव से आई हो  . बड़े शहर के बारे में ज्यादा नहीं जानती हो  . और अपने काम से मतलब रखो इस से ज्यादा जानने की तुम्हें जरूरत नहीं है  . समझी न ? “ 

 

क्रमशः